Govardhan Worship is symbolic of conservations of our Hills and Forest ,the flora and fauna (HINDI )
Govardhan Worship is symbolic of conservations of our Hills and Forest ,the flora and fauna (HINDI )
- क्या है गोवर्धन पूजा का वैज्ञानिक महत्व?
- हमारे पर्बतों ,पेड़ -पौधों ,वनस्पतियों के संरक्षण का पर्व है गोवर्धन पूजा। पौराणिक कथाओं का अपना एक सशक्त सन्देश रहा आया है जिसके संकेतों को बूझकर हम अपने तीज -त्योहारों को एक नया आयाम दे सकते हैं नया आयाम उनसे ग्रहण कर सकते हैं।
- वन देवी ,जल और अग्नि देव ,भू -देवी (विष्णु प्रिया ) आदिक का पूजन बड़ा अर्थगर्भित रहा आया है।आज जलवायु परिवर्तन की सुगबुगाहट हमारी जीवन शैली हमारे अपने हवा ,पानी ,मिट्टी की हमारे द्वारा दुर्गति करते रहने का ही परिणाम है। बेहतर है हम अपनी जीवन शैली सुधार लें। पर्यावरण है तो हम हैं। हमारा पर्यावरण पारितंत्र ही हम हैं। इसकी सेहत से जुड़ा है हमारा अस्तित्व।
- पढ़िए ये मूल रिपोर्ट जिसका लिंक है :
https://dailynews360.patrika.com/story/news/importance-of-govardhan-puja-26267.html
- दीपावली के दूसरे दिन यानी कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन और गौ पूजा का विशेष महत्व है। एेसा माना जाता है कि इस दिन गाय की पूजा करने के बाद गाय पालक को उपहार एवं अन्न वस्त्र देना चाहिए।
गोवर्धन 2018: जानिए क्यों मनाते हैं गोवर्धन, क्या है पूजा विधि आैर महत्व
दीपावली के दूसरे दिन यानी कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन और गौ पूजा का विशेष महत्व है। एेसा माना जाता है कि इस दिन गाय की पूजा करने के बाद गाय पालक को उपहार एवं अन्न वस्त्र देना चाहिए। ऐसा करने से घर में सुख समृद्धि आती है। वृंदावन और मथुरा सहित देश के कई हिस्सों में इस दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है और अन्नकूट उत्सव मनाया जाता है। इस बार गोवर्धन पूजा 8 नवंबर को है।
गोवर्धन पूजा काे लेकर धार्मिक कथा भी प्रचलित है। मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्र का अभिमान चूर करने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाकर संपूर्ण गोकुल वासियों की इंद्र के प्रकोप से रक्षा की थी। इंद्र के अभिमान को चूर करने के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने कहा था कि कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन 56 भोग बनाकर गोवर्धन पर्वत की पूजा करें। गोवर्धन पर्वत से गोकुल वासियों को पशुओं के लिए चारा मिलता है और यही पर्वत यहां बादलों को रोककर वर्षा करवाता है, जिससे कृषि उन्नत होती है। इसलिए गोवर्धन की पूजा की जानी चाहिए।
तभी से गोवर्धन पूजा के दिन अन्नकूट बनाकर गोवर्धन पर्वत और भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करने का विधान है। वहीं एक अन्य धार्मिक मान्यता के अनुसार, आज के दिन अन्नकूट इसलिए मनाया जाता है क्योंकि इंद्र के कोप से गोकुलवासियों को बचाने के लिए जब कान्हा ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाया तब गोकुल वासियों ने 56 भोग बनाकर श्रीकृष्ण को भोग लगाया था। इससे प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण ने गोकुल वासियों को आशीर्वाद दिया कि वह गोकुल वासियों की रक्षा करेंगे।
अन्नकूट बनाने की विधि
अन्नकूट बनाने के लिए सभी मौसमी सब्जियां, दूध, मावा, सूखे मेवे और चावल का प्रयोग किया जाता है। साथ ही ताजे फल और मिष्ठान से भगवान को भोग लाया जाता है। अन्नकूट में 56 प्रकार के खाद्य पदार्थ शामिल किए जाते हैं। इन सभी से प्रदोष काल (शाम के समय) में विधि-विधान से श्रीकृष्ण भगवान की पूजा की जाती है। इसके साथ ही गाय की पूजा कर उसे गुड़ और हरा चारा खिलाना शुभ माना जाता है।
क्यों होती है इंद्रदेव की पूजा?
गोवर्धन पूजा में भगवान कृष्ण के साथ ही धरती पर अन्न उपजाने में मदद करने वाले सभी देवों जैसे, इंद्र, अग्नि, वृक्ष और जल देवता की भी आराधना की जाती है। गोवर्धन पूजा में इंद्र की पूजा इसलिए होती है क्योंकि अभिमान चूर होने के बाद इंद्र ने श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी। तब कान्हा ने उन्हें क्षमा करते हुए गोवर्धन पूजा में उनकी आराधना का आदेश दिया।
क्यों हुए थे इंद्र नाराज?
मान्यता है कि गोवर्धन पूजा से पहले बृज में इंद्र पूजा की जाती थी। क्योंकि इंद्र वर्षा कराते हैं और मौसम अनुकूल रख फसलों की पैदावार में सहायता करते हैं। लेकिन द्वापर युग में जब श्रीकृष्णा ने अपनी माता यशोदा को इंद्र पूजा की तैयारियों में व्यस्त देखा, तब कान्हा ने कहा कि अब से हम इंद्रदेव की नहीं बल्कि गोवर्धन पर्वत और पेड़-पौधों की पूजा करेंगे। क्योंकि इन सभी से हमें जीवन जीने में सरलता होती है। कान्हा की यह बात मानकर सभी बृजवासियों ने उस साल ऐसा ही किया। इस बात से इंद्र क्रोधित हो गए और मूसलाधार बारिश करा दी। कान्हा इंद्र के क्रोध को समझ गए और उन्होंने बृजवासियों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को अपने हाथ की सबसे छोटी उंगली पर उठा लिया। इंद्र ने कुपित होकर लगातार 7 दिन तक मूसलाधार बारिश की लेकिन अंत में उन्हें कान्हा से क्षमा मांगनी पड़ी।
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